NEW ARRIVALS

LIBRARY UPDATES:-

प्रयास आखिरी सांस तक करना चाहिए, या तो लक्ष्य हासिल होगा या अनुभव दोनों ही बातें अच्छी है.

March 17, 2012

फॉरेस्ट्री: कॅरियर का ग्रीन सिग्नल

पुस्तकालय  केंद्रीय विद्यालय - भदरवाह


------फॉरेस्ट्री: कॅरियर का ग्रीन सिग्नल------


पुरानी कहावत है कि इंसान के पैदा होने से लेकर मृत्यु तक मनुष्य व वृक्ष का बराबर साथ रहता है। पैदा होने के बाद जहां लकडी का पालना उसे सहारा देता है तो मृत्यु के बाद भी उसे लकडियों के ढेर यानि चिता में आखिरी पनाह मिलती है। यही कारण है कि वृक्षों को हमारी संस्कृति में देव का दर्जा दिया जाता है। ज्यादातर छोटे बडे समारोह, त्योहार बिना वृक्ष पूजन के परिणति तक नहीं पहुंचते। तार्किक नजरिए से सोचें तो धरती पर प्राण वायु यानि ऑक्सीजन का इकलौता जरिया वृक्ष ही हैं उनके आभाव में मानव जीवन पर क्या असर पड सकता है,सोच के ही सिहरन उठती है। ऐसे में यदि हम चाहते हैं कि सौरमंडल में धरती का अद्वितीय ग्रह के रूप में दर्जा सलामत रहे तो फिर वन सुरक्षा के अलावा हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है। यही कारण है कि देश की सरकार वनों की सुरक्षा और उन्हें बढाने के लिए संबंधित विशेषज्ञों की काफी संख्या में नियुक्ति कर रही हैं। इससे बडी संख्या में युवाओं के लिए अवसरों का पिटारा खुल रहा है।



फॉरेस्ट्री में विविधतापूर्ण विकल्प



जाने माने ब्रिटिश प्रकृतिवादी व लेखक जिम कार्बेट ने अपनी एक कहानी में लिखा है कि प्रकृ ति का अध्ययन एक ऐसा विषद विषय है, जिसका कोई ओर-छोर नहीं होता। इसको न तो कहीं से शुरू हुआ न तो कहीं से खत्म हुआ माना जा सकता है। ऐसे में विविधताओं से संपन्न भारतीय वन युवा क ॅरियर को विविधतापूर्ण विकल्प भी देते हैं। लेकिन पहले ऐसा नहीं था, सीमित संभावनाओं केबीच इस क्षेत्र में वन्य अधिकारी, शोध, कंजर्वेशनिस्ट जैसे गिने चुने अवसर ही थे, लेकिन जैसे जैसे फॉरेस्ट, वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन के बारे में लोगों में जागरूकता आई है, यहां काम का दायरा भी बढा है। सरकारी व निजी क्षेत्रों में कई विभाग हैं, जो फॉरेस्ट्री में ग्रेजुएट युवाओं को अवसर दे रहे हैं।



ऑफबीट: खुले नए अवसर



इन दिनों वानिकी में क्वालीफाइड छात्रों के पास फॉरेस्ट, कंजरवेशन के अलावा कई अवसर हैं। लेकिन इन अवसरों की प्रकृति पंरपरागत वानिकी से कुछ हटकर है। तेजी से बदलती परिस्थितियों के बीच बहुत संभव है कि आने वाला कल इन्हीं जॉब्स का हो। टिंबर प्लांटेशन में कार्यरत कॉरपोरेट हाउस, एनजीओ, वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी, फिल्म मेकिंग, लैंडस्केप मैनेजमेंट, जू क्यूरेटिंग, कंसल्टेंसी फ‌र्म्स इसके कुछ उदाहरण हैं।



शोध: अवसरों की रिसर्च- इंवायरनमेंट रिसर्च?के क्षेत्र में हमेशा से ही बढिया संभावनाएं रही हैं। आखिर शोध के ही जरिए हमें वृक्षों,वन्य जीवों में होने वाले बदलावों, लक्षणों प्रजातिगत विभिन्नताओं का पता चलता है। देश में इंडियन कांउसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजूकेशन (आईसीएफआरई), इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल फॉरेस्ट्री एंड इको रिहैबिलिटेशन एंड वाइल्ड लाइफ रिसर्च इंस्टीट्यूट, टाटा एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट जैसे कई प्रीमियर संस्थान हैं, जहां बतौर शोधार्थी?आप जगह बना सकते हैं।



विदेश: मौके हैं हाईप्रोफाइल- देर से ही सही पर्यावरण के बारे में लोग जिम्मेदार हुए हैं। वे न केवल इस दिशा में संगठित प्रयासों के हिमायती हैं बल्कि खुद भी पहल करने से भी नहीं हिचकिचाते। लोगों की इसी ग्लोबल इंवायरनमेंट कंसर्न के चलते आज विदेशों और खासतौर यूएन में क्वालीफाइड युवाओं की मांग बढी है।



कोर्सेज व योग्यताएं हैं अहम



इस फील्ड में कॅरियर की न्यूनतम शर्त बीएससी इन फॉरेस्ट्री है। अगर आप साइंस से बारहवीं हैं, तो इस कोर्स में एडमिशन के लिए योग्य हैं। वानिकी में पीजी डिग्री केलिए आपका इसी विषय में बैचलर होना अनिवार्य है। उच्च स्तर पर फॉरेस्ट्री कोर्सेस का स्पेशलाइजेशन हो जाता है, जिनमें फॉरेस्ट मैनेजमेंट, कॉमर्सियल फॉरेस्ट्री, फॉरेस्ट इकोनॉमी, वुड सांइस, वाइल्ड लाइफ सांइस खासे लोकप्रिय हैं। कई प्रोफेशनल संस्थान पीजीडीएम इन फॉरेस्ट मैनेजमेंट जैसे डिप्लोमा कोर्स भी ऑफर करते हैं।



प्रमुख संस्थान



* फॉरेस्ट्री रिसर्च इंस्टीट्यूट, देहरादून

* इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट, भोपाल, मप्र

* वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, देहरादून

* कॉलेज ऑफ हॉर्टीकल्चर एंड फॉरेस्ट्री, सोलन, हिप्र

* कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग,पंजाब

* कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड रीजनल रिसर्च सेंटर, धारवाड, राजस्थान

* कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर, उत्तराखंड


फॉरेस्ट्री फॉरेस्ट्री में आज काम का दायरा बढा है। इसके अंतर्गत केवल वनों की ही सुरक्षा एक काम नहीं रह गया है बल्कि इसमें वनो से जुडे औद्योगिक उत्पादन में भी काम की बढिया संभावनाएं हैं। पेपर इंडस्ट्री, फर्नीचर, माचिस जैसे कई काम इसमें ही शुमार होते हैं। तो वहीं इक ोलॉजी, नेचुरल डिजास्टर मैनेजमेंट ,फॉरेस्ट सर्वे, स्वाइल वाटर कंजरवेशन, इको टूरिज्म जैसे क्षेत्रों में भी फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट/पीजी/डिप्लोमाधारी कैंडिडेट्स का बोलबाला रहता है। फॉरेस्ट्री में बढे प्रोफेशनल्स की मांग के चलते आज देश में इससे जुडे संस्थानों की भी कमी नहीं है। आप चाहें तो यहां के फुल ऑफ वैरायटी कोर्सेस में दाखिला लेकर अपना कॅरियर बेहतर बना सकते हैं।



 
चिपको ने बदली तस्वीर



1974 में देश एक बिल्कुल ही नए ढंग के आंदोलन का गवाह बना। आंदोलन की प्रकृति तो गांधीवादी थी, लेकिन यह राजनैतिक सत्ता या फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ आम लोगों की गोलंबदी नहीं थी। यह आंदोलन था वृक्षों के खातिर। हम बात कर रहे रहे हैं सुंदर लाल बहुगुणा के नेतृत्व में उत्तराखंड के (तत्कालीनउत्तर प्रदेश) चमोली जिले में चलाए गए चिपको आंदोलन की। इसमें लोग पेडों के इर्द गिर्द खुद को ह्यूमन शील्ड के तौर पर इस्तेमाल करते थे। नतीजतन पेड काटने वालों के पास इन पेड छोडने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता था। 80 के दशक में चिपको क ा असर देश के कई हिस्सों में दिखा। परिणामस्वरूप, वृक्षों की कटान में तो कमी आई ही, लोगों को जनआंदोलन के महत्व का भी पता चला। आज भी पूरी दुनिया में इस आंदोलन को फॉरेस्ट सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है।



फॉरेस्ट्री: कॅरियर का ऑक्सीजन



धरती इकलौता ऐसा ग्रह है ,जहां जीवन संभव है। यदि हम चाहते हैं कि धरती का यह रुतबा बरकरार रहे तो प्रयास ही आखिरी विकल्प है। वानिकी में मौजूदा कॅरियर इन प्रयासों को गति दे सकते हैं.
पर्यावरण जगत में पिछली एक सदी में जोरदार परिर्वतन देखने को मिले हैं। ग्रीन हाउस गैसें, क्षतिग्रस्त होती ओजोन परत, ग्लोबल वार्मिग, पिघलते ग्लेशियर्स जैसे मुद्दे जो पहले कहीं चर्चा में नहीं थे, आज पर्यावरणविदों की प्रमुख चिंताओं में शुमार होते हैं। मौजूदा परिस्थितियों में यहां कॅरियर के कई अंजाने लेकिन ग्रोथ से भरपूर अवसर दस्तक दे रहे हैं..

 
वाइल्ड लाइफ जर्नलिज्म इस समय यह सबसे हॉट सेक्टर है। जर्नलिज्म से जुडे लोगों के लिए यहां मौके ही मौके हैं। ये लोग वन्य जीवन से जुडी तमाम जानकारियां दर्शकों, पाठकों तक पहुंचाते हैं। वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी, डॉक्यूमेंट्री निर्माण इनके ही काम का हिस्सा होते हैं। वाइल्ड लाइफ की ओर रुझान रखने वाले क्रिएटिव युवाओं के लिए यहां अवसरों की कमी नहीं है।



फॉरेस्ट रेंजर- वनों की अवैध कटाई, शिकार पर लगाम लगाने के साथ सार्वजनिक वनों, अभ्यारणों, राष्ट्रीय उद्यानों में उचित वन्य कानून कापालन करना फॉरेस्ट रेंजर का दायित्व होता है। ये लोग राज्य वन सेवाओं के जरिए चुने जाते हैं।



जू क्यूरेटर- शहरी क्षेत्रों में बने चिडियाघरों व वन्य जीव अभ्यारणों में जानवरों की देखरेख एक अहम काम होता है। जू क्यूरेटर इसी काम को अंजाम देते हैं। बडे-बडे चिडियाघरों में जू मैनेजर व जू क्यूरेटर्स की नियुक्ति की जाती है। आप संबंधित कोर्स करके इस क्षेत्र में प्रवेश पा सकते हैं।



इको टूरिज्म- इको टूरिज्म जुडा तो पर्यटन से है, लेकिन इसमें इकोलॉजी यानि पारिस्थितिकी का भी समावेश होता है। यहांकाम करने वाले लोग टूरिज्म के साथ इकोलॉजी की भी अच्छी खासी नॉलेज रखते हैं। देश के विविधतापूर्ण भौगोलिक व प्राकृतिक दशाओं के कारण आज इको टूरिज्म हॉट जाब बनकर उभर रहा है।



फॉरेस्टर- वन्य जगत में फॉरेस्टर के काम की अपनी ही अहमियत है। यह मुख्यतय: वनों के संरक्षण, परिवर्धन के लिए कार्य करता है। वन्य जीवों के वासस्थान की सुरक्षा, जंगलों में लगने वाली आग से बचाव आदि भी उसके ही कार्यो में आते हैं। वर्तमान में खत्म होती वनों की प्रजातियों के बीच यहां जॉब्स की बढिया गुंजाइश है और भविष्य में काफी संभावनाएं हैं।



डेंड्रोलॉजिस्ट- इसके मुख्य काम वृक्षों का जीवन चक्र, ग्रेडिंग, क्लासीफिकेशन, मेजरिंग, रिसर्च आदि होते हैं। इसके अलावा वृक्षों की सुरक्षा, वैज्ञानिक विधियों की मदद से उनके जीवनकाल में बढोत्तरी जैसे कार्य भी इनकी जिम्मेदारी होती है।



इथनोलॉजिस्ट- इथनोलॉजिस्ट वनों व जैव संपदा में होने वाले परिवर्तन और उनकी कार्यप्रणाली का अध्ययन करता है। जू, एक्वेरियम, लैब्स आदि में जीवों के लिए वासस्थान तैयार करने में इथनोलॉजिस्ट की काफी जरूरत पडती है।



सिल्वीकल्चरिस्ट- सिल्वीकल्चरिस्ट का काम एक नस्ल विशेष के पौधों की खेती व उनकी वृद्धि सुनिश्चित करने का होता है। पौधों की दुर्लभ प्रजाति के विकास में इनका महत्वपूर्ण योगदान होता है।



जनसेवा के साथ एडवेंचर भी: डॉ.बहुगुणा फॉरेस्ट्री में कॅरियर की असीम संभावनाएं हैं। युवाओं का रुझान इस ओर बढा है। इसकी एक वजह तो यह है कि वानिकी सीधे-सीधे आम लोगों को प्रभावित करता है तो दूसरे इसमें जन सेवा के साथ एडवेंचर का भी अच्छा स्कोप है। यह मानना है महानिदेशक, भारतीय वानिकी अनुसंधान व शिक्षा परिषद व वन अनुसंधान संस्थान केकुलपति डॉ. वी.के. बहुगुणा का। पेश है हमारी उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश-



इस क्षेत्र में किस तरह की स्किल्स की दरकार होती है?



वैज्ञानिक जिज्ञासा सबसे जरूरी है। प्रकृति में वनों का विकास कैसे होता है, वनों की गैरमौजूदगी का हम पर क्या असर पड सकता है आदि चीजों की अधारभूत व मौलिक जानकारी आवश्यक है। ज्यादातर वानिकी संस्थान इन्हीं सवालों पर कैंडिडेट्स का चयन करते हैं।



फॉरेस्ट्री के मुख्य सब्जेक्ट क्या हैं?



फॉरेस्टर का क्षेत्र काफी व्यापक है। इसके कोर सब्जेक्ट्स में सिल्वीकल्चर, इकोलॅाजी, फॉरेस्ट मैनेजमेंट, वुड सांइस, क्लाइमेंट चेंज, इकोसिस्टम मैनजमेंट आदि सबसे खास है। इस दौरान कोर्स के अंतर्गत इंवायरनमेंट सब्जेक्ट पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। वहीं पर्यावरण से जुडे मुद्दों को गंभीरता से अध्ययन करें तो बेहतर होगा।



आने वाले समय में इस फील्ड में कैसे अवसर हैं?



धरती की जीवन लायक परिस्थितियों को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हम वनों का संरक्षण करें। देखा जाए तो आज वनों का कोई विकल्प भी नहीं है। ऐसे में इस फील्ड में अवसरों का भविष्य अच्छा है। आज की तारीख में करीब डेढ लाख लोग फॉरेस्ट है।


आईएफएस: संवारिए देश की कुदरत



भारतीय वन सेवा ऐसी सीढी है, जो वानिकी में आपको एक अहम मुकाम दे सकती है.. ऑल इंडिया सर्विस एक्ट,1951 के तहत आईएफएस की शुरुआत1966 में हुई। इसक े प्रमुख कार्यो में वनों की सुरक्षा, संवर्धन, वन्य संसाधनों, जैव संपदा का रखरखाव इत्यादि शामिल हैं। वैसे देखा जाए तो इसकी शुारुआत काफी पहले ही ब्रिटिश राज के दौरान1864 में द इंपीरियल फॉरेस्ट सर्विस के नाम से हो गई थी। बाद के सालों में इसमें प्रादेशिक वन सेवा व अन्य अधीनस्थ सेवाएं भी जोडी गई। राष्ट्रीय स्तर पर वन सेवा परीक्षा साल में एक बार आयोजित होती है, जबकि राज्य स्तर पर भी इस परीक्षा का आयोजन होता है।



कैसा है परीक्षा का स्वरूप- संघ लोक सेवा आयोग भारतीय वन सेवा परीक्षा का आयोजन हर साल जुलाई माह में करता है। परीक्षा का मूल प्रारूप सिविल सेवाकी ही तरह है। इसमें चयन केपूर्व कैंडिडेट्स को तीन चरणों की चयन प्रक्रिया से गुजरना पडता है। प्रारंभिक परीक्षा के बाद कैंडिडेट्स का सामना कुल 1400 अंक केसामान्य अंगे्रजी, जीके (अनिवार्य) व दो वैकल्पिक विषय (वन सेवाओं के लिए तय किए विषयों में कोई 2) से होता है। इसके बाद इंटरव्यू (300 अंक) में सफलता के बाद ही उम्मीदवार अंतिम चयन के योग्य माना जाता है।



कौन कौन से हैं पद- वन सेवा में रेंज ऑफिसर, असिस्टेंट कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट, कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट, चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट,एडिशनल प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट, प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट (राज्यों में सर्वोच्च पद) डायरेक्टर जनरल ऑफ फॉरेस्ट (सर्वोच्च वन अधिकारी) प्रमुख पद हैं। आईएफएस व राज्य स्तरीय वन सेवाओं में बढिया प्रदर्शन कर आप इन पदों के हकदार बन सकते हैं।



महत्वपूर्ण है एलिजिबिलिटी- 21-30 की उम्र के वे सभी स्नातक आईएफएस परीक्षा के लिए अप्लाई कर सकते हैं जिनके पास स्नातक में एनीमल हसबैंडरी, वेटेरिनरी सांइस, बॉटनी, जूलॉजी, कैमिस्ट्री, मैथ्स, फि जिक्स, स्टेटिस्टिक्स, जिओलॉजी, फॉरेस्ट्री मे से कोई विषय हों या फिर वे इंजीनियरिंग स्नातक हों।



कैसे करें तैयारी- इस परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्न सामान्यत: स्नातक स्तर के होते हैं। यूनिवर्सिटी स्तर पर यदि आपकी विषयों पर पकड अच्छी है तो आईएफएस में बेहतर प्रदर्शन की संभावना बढ जाती है। सामान्य ज्ञान के अनिवार्य?पेपर में बेहतर करने के लिए स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं क ा नियमित अध्ययन करें। देश दुनिया में होने वाली हर छोटी बडी घटना से अपडेट रहें। अंग्रेजी के अनिवार्य प्रश्नपत्रों के लिए पुराने प्रैक्टिस पेपर का अधिक से अधिक अभ्यास करें।


द्वारा-- संतोष पाण्डेय